Sunday 10 August 2014

Ruby and Contradictory Stones (Kaunse Ratna Manik ke Sath Nahi Pahanane Chahiye)

                 
Hello my friends, I welcome you to again on my blog. Now I will try to explaine about the each and every gemstone and its Contradictory gemstone.  
Today I start from the Ruby Gem, a powerful stone for the Sun and will tell you from its Contradictory gemstone.
       
I have seen a number of persons wearing gemstone with its Contradictory gemstone. This may give to the adverse effects on your. So, I thought to wright this post.
    
As you all know the sun is king among all the 9 planets. Jupiter, Mars and Moon are his friends. Sun has a bitter enmity with Venus, Saturn,  Rahu and Ketu.

So, if someone is wearing Ruby, he should not wear Diamond or Blue Sapphire with it. Because Venus and Saturn are Sun's enemies. Apart from this Gomed and Cat's eye should also not be worn along with Ruby because they are the stones of Rahu and Ketu. 

If the gemstones of enemy planets are worn, they might do harm rather than giving benefit just like if two medicine, which react with each other are taken together may harm the person.

Also, I wil explain about the quality of the manik gemstone.  Best quality Manik/ Ruby is found in Burma in above shown images, I have taken two Manik/Ruby, one is Red color and the second one is Pink, both are from Burma. But Pink one is best quality Ruby and it is very expensive. We see lot of persons in day to day life wearing Red Blood Color Ruby because it has some low cost than Pink Ruby. But Ruby gemstone taking a light pink color is best quality Ruby. 
       
You should always wear the Ruby/ Manik in your right hand ring finger. Later I will explain why it is recommended in right hand's ring finger.
  
नमस्कार मेरे दोस्तों। वैसे तो हर 9  ग्रहो का एक रत्न शस्त्रों ने बताया है।  उनके  बारे में भी में आपको बताऊंगा पर आज ग्रहों के राजा सूर्य देवता के रत्न माणिक के बारे में आपको बताऊंगा। रत्नो का इस्तेमाल ग्रहों की शक्ति बढ़ाने के लिए होता आया है।   
         
मैंने कई लोगो को परस्पर विरोधी रत्न डाले हुए डाले देखा है इसलिए मैंने यह पोस्ट अपने दोस्तों तक पहुँचाने का विचार बनाया।  जैसे की मैंने आपको बताया की सूर्या देवता सब ग्रहों के राजा है और इनका रत्न माणिक बहुत ही शक्तिशाली रत्न है।

बर्मा का माणिक सबसे अच्छा माणिक माना जाता है। यह खूनी लाल रंग और हल्का गुलाभी रंग में आता है। प्राय आपने लोगो को खुनी लाल  माणिक पहने हुए देखा होगा क्योंकि यह आसानी से गुलाभी माणिक से कम दामो में उपलब्ध होता है। मैंने अपनी पोस्ट में दोनों माणिक रत्नों के फोटो डाले हुए है।  दोनों ही बर्मा के माणिक है, पर जो का माणिक हल्के गुलाभी रंग का होता है वो सबसे अच्छा माना जाता है तथा यह लाल माणिक से महंगा होता है। 

मंगल, चन्द्र, और गुरु इनके मित्र है और बुध इनके सम ग्रह है। इसलिए इन देवताओ से सम्बन्धी रत्न हमे माणिक के साथ पहन लेने चाहिए। लेकिन शुक्र, शनि तथा राहु एव केतु के रत्न हमे कभी भी माणिक के साथ नही पहने चाहिए क्योंकि यह सूर्य देवता के शत्रु ग्रह है।

  
माणिक कभी भी हीरा, नीलम और गोमेद और लहसुनिया के साथ नही पहनना  चाहिए। 

Sunday 3 August 2014

ज्योतिष और राजयोग

एक बार फिर से आप सभी का अभिनन्दन।  दोस्तों मैंने अपनी पिछली पोस्ट में बात की थी कुछ ज्योतिषय दोषो को बारे में जिनके हमे यथा संभव उपाय जरूर करवा लेने चाहिए अन्यथा उनके परिणाम दुष्कर होते है। इसी श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए आज मैं आपको ज्योतिष्य योग व् राजयोगों के बारे में कुछ बताऊंगा क्योंकि राजयोग या ऐसे ही समृद्धिपर्त योगो को हर व्यक्ति अपनी जन्मपत्रिका में खोजता रहता है जैसे की यह कैसे बनते है और इनका क्या प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है इत्यादि।  सबसे पहले में यह साफ़ बता दूँ की राजयोगों से प्रयाय राजा बनने से नही है। राजयोगों का अर्थ होता है अपने सम्बंधित कार्य में या अपने जीवन में राजा तुल्य होना एवंम राज तुल्य मान सम्मान पाना।

१. गजकेसरी योग / Gajkesari Yoga -  गजकेसरी योग का नाम आपने बहुत सुना होगा। जोकि ज्योतिष में बनने वाले कुछ महान राजयोगों में से एक है।  इसके सृजन का कार्य गुरु एवम चन्द्रमा देवता का है , जब भी कुंडली के किसी भाव में गुरु और चन्द्रमा एक साथ बैठ जाते है या एक दूसरे से केंद्र में होते है तब इस योग का निर्माण होता है।
इस योग में जन्मा जातक दैवीय गुण लेकर पृथ्वी पर आता है। धार्मिक कर्मकांड में रूचि रखने वाला, ईश्वर को मानने वाला होता है। उसका मन साफ़ होता है तथा वह धोखा धडी करना, किसी का हक़ मारना इत्यादि कार्यो से घृणा करने वाला होता है।  ऐसे व्यक्ति अपने जीवन के  ३० वर्ष पूरे होने के जाने के बाद बहुत ज्यादा उन्नति करते हुए आपको दिख जाएंगे।  कर्क राशि में बनने वाला गजकेसरी योग सर्वोत्तम होता है तथा यह व्यक्ति को जीवन के सर्वोच्च स्तर तक पंहुचा देता है क्योंकि यहां गुरु देवता की उच्च राशि होती है तथा चन्द्रमा देवता की यह स्व-राशि होती है।  कर्क राशि का गजकेसरी योग प्राय: बहुत काम जातको की कुंडली में देखने को मिलता है।  इस योग का निर्माण यू ही नही हो जाता, पिछले जन्म में जातक ने बहुत अच्छे कर्म किये होंगे तबी यह योग उसे अपने प्रारभ्ध में इस जन्मं में मिला होता है।  

२. पंचमहापुर्ष योग / Panch Mahapurusha Yoga - पंचमहापुर्ष योग ५ ग्रहों के दवारा बनने वाला योग होता है। जिसे मंगल, बुध, गुरु , शुक्र और शनि देवता कुंडली के किसी भी एक केंद्र स्थान (1,4,7,10) में से  अपनी स्व-राशि , अपनी मूलत्रिकोण राशि या  अपनी उच्च राशि में बनाते है।  

(क) रूचक योग / Ruchaka Yoga - मंगल से बनने वाला यह योग अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण योग है, कुंडली के केंद्र स्थान 1,4,7,10 में मंगल देवता इस योग का निर्माण करते है।  1,4,7 भाव जहाँ मंगल देव मंगली योग का भी निर्माण करते है लेकिन जब इन घरो में मंगल जब अपनी स्व-राशि , अपनी मूलत्रिकोण राशि या  अपनी उच्च राशि बैठ हो तो वह रूचक योग का सृजन करते है जोकि व्यक्ति को उसके वर्किंग फील्ड में एक राजा की तरह सम्मान प्राप्त करवा देता है।  इसके अलावा ऐसा व्यक्ति दुसरो से अपनी बात मनवाने में समर्थ होते है।  अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते है। इसके अलावा मंगल देव जातक को साहसी कार्य जैसे आर्मी, पोलिस फ़ोर्स , आर्म्ड फोर्सेज आदि से जोड़ते है। मेडिकल, मेडिशन, सर्जरी डॉक्टरी पैसा, बड़े प्रॉपर्टी डीलर, रियल स्टेट का व्यवसाय इत्यादि से भी जातक को जोड़ देते है।  आपने अक्सर कुछ मंगली व्यक्तियो को  देखा होगा जो अपने जीवन में बहुत उन्नति करते है उसका कारण यही योग होता है। 

(ख ) भद्र योग / Bhadra Yoga - बुध देवता द्वारा बनने वाला भद्र योग जातक को पत्रकारिता, टीचिंग, लायस्निंग, लेखन  व्  ज्योतिष विद्या में बहुत अधिक मान सम्मान दिलवा देता है तथा इन जातको में सामान्य से अधिक बुद्धि होती है। इस योग में जन्मे जातक की कीर्ति अमर हो जाती है तथा वह मरने के बाद भी उसकी उपलब्दियो व् उसके ज्ञान के लिए याद किया जाता है। 

(ग) हंस योग / Hans Yoga - देवताओ के गुरु बृहस्पति के द्वारा बनने वाला हंस योग जातक को  विद्वान और ज्ञानी बनता है. उसमें न्याय करने का विशेष गुण होता है, तथा हंस के समान वह सदैव शुभ आचरण करता है। उसमें सात्विक गुण पाये जाते है। भगवान में उसकी विशेष आस्था होती है तथा पूर्णत आस्तिक होता है। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में हर सुख सुविधा को भोगते है।  

(घ) मालव्य योग / Malavya Yoga -  असुरो के गुरु शुक्राचार्य को कई विद्याओ में देवताओ के गुरु बृहस्पति से भी ज्यादा निपुणता प्राप्त है। यही शुक्राचार्य शुक्र देवता के नाम से जाने जाते है। सम्पूर्ण 64 कलाओं के स्वामी शुक्र देवता पूरी जन्मकुंडली में केवल अकेले खुद ही अच्छी स्थिति में हो तो  व्यक्ति को सारे ऐश्वर्य भोग विलास दे देते है। मैंने ऐसी ऐसी जन्मकुंडली भी देखी है जिनमे अकेले उच्च के शुक्र देवता ने जातक को सम्पूर्ण ऐश्वर्य दे रखा है, सारी भोग विलासिता के चीज़े उनको उपलब्ध करवाई हुई है। दोस्तों इसका मतलब यह मत लेना की हम तो कर्म करेंगे ही नही अकेला शुक्र देवता सब कुछ कर देगा ऐसा कतई भी संभव नही है दोस्तों। भाग्य तो लंगड़ा है उसको कर्मो की वैशाखी से चलाया जाता है। कर्म सिद्धांत के बारे में एक अलग से पोस्ट में चर्चा करूँगा। होटल्स, रेस्तरां,  फैशन और फैशन डिजाइनिंग, नृत्य, एक्टिंग, सिंगिंग, ब्यूटी पार्लर, बार ऐंड क्लब यह सब शुक्र देवता से सम्बंधित कार्य है जिनका कुछ का ही का वर्णन में यहाँ कर रहा हूँ। कुंडली में शुक्र देवता केंद्र या त्रिकोण में उच्च राशि के हो तो व्यक्ति को परम ऐश्वर्य सिद्ध करा ही देते है।  

(ङ) शश योग / Sasha Yoga - शश योग का  निर्माण शनि महाराज कुंडली के केंद्र स्थानो में से किसी एक केंद्र स्थान में करते है। 
यह योग अपने आप में ही काफी मान्यता प्राप्त राज योग है। भारत के भूतवपूर्ण प्रधानमंत्री श्री अटल विहारी वाजपेयी की कुंडली में यह योग विराजमान है।  हालंकि शनि का केंद्र में होने का एक साइड इफ़ेक्ट जरूर है शनि महाराज जब भी अपने घर को छोड़ कर किसी भी घर को देखते है तो उसका सुख ख़त्म ही कर देते है।  जैसे की श्री अटल विहारी वाजपेयी और श्री नरेंद्र मोदी दोनों की कुण्डलियों में शनि 10 हाउस में बैठ कर अपनी दशवीं दृश्टि से पत्नी के घर को देखते है तो दोनों को ही पत्नी का सुख नसीव नही हो पाया।  हालंकि एक की शादी तो हो गयी लेकिन पत्नी से दुरी ही रही वही अटल जी की शादी ही नही हुई। तो यह कार्य शनि महाराज का है। लेकिन अगर शनि देव खुद ही 7 घर के स्वामी हो और उसे देखे या फिर वहां शश योग का निर्माण करे तो स्थिति बदल जाती है और वहां पति पत्नी में अलगाव की स्थिति नही आती।एक अकेले शश योग पर एक किताब लिखी जा सकती है, मैं यहाँ संक्षिप्त में ही चर्चा करूँगा। मैंने अपने एक मित्र की जन्मपत्रिका देखी वह मेरे साथ ही मेरी कंपनी में गुडगाँव जॉब करता था , हांलांकि हमारी कंपनी भी बहु- राष्टीय (MNC) कम्पनी है। लेकिन उसकी कुंडली लग्न के स्वामी हो कर शनि महाराज अपनी उच्च राशि में शश योग का निर्माण कर रहे थे। मेने उसको बोल दिया था की तुम्हे गूगल या किसी बड़ी कंपनी में ट्राय करना चाइये, उसने बताया की वह ट्राय कर रहा है, मैने उसको बता दिया की तुम्हारा सिलेक्शन होने से कोई नही रोक सकता बस शनि महाराज का प्रत्यंतर आने दो , जैसे ही शनि का प्रत्यंतर आया उसके दो दिन बाद ही उसकी कॉल विश्व की प्रितिष्ठित कंपनी से आई और आज वह Adobe में कार्य कर रहा है। 

          दोस्तों मैंने यह बात की सर्वमान्य कुछ राजयोगों के बारे में अब हम बात करेंगे ज्योतिष के पितामह महिर्षि पराशर द्वारा बताये गए केंद्र और त्रिकोण के सम्बन्ध से बनने वाले राजयोगो के बारे मे,  इन योगो के बारे में लघु पाराशरी पुस्तक लिखी गयी है और इनके बारे में भी मैं संक्षेप ही बता पाउँगा क्योंकि जिन विषयो पर पुस्तकें लिखी जा चुकी हों, उनको ब्लॉग पर लिख पाना संभव नही है। लेकिन फिर भी में संक्षेप में अपने दोस्तों को बताने का प्रयास करूँगा।    

केंद्र त्रिकोण सम्बन्धी राजयोग / Kendra Trikone Rajyoga  - इसके लिए पहले हमे केंद्र स्थानो  तथा त्रिकोण स्थानो को जानना पड़ेगा।  केंद्र स्थान  1, 4, 7, 10 होते है जबकि त्रिकोण स्थान 1, 5, 9  होते है। केंद्र को विष्णु स्थान तथा त्रिकोण को लक्ष्मी स्थान कहा जाता है। जब भी जन्मकुंडली में केंद्र का स्वामी गृह, त्रिकोण के स्वामी गृह के साथ केंद्र या त्रिकोण भाव में विराजमान हो अथवा दृष्टि सम्बन्ध बनता हो। तब इन सुन्दर राजयोगो का स्रजन होता है।  यह अपने आप में बहुत शक्तिशाली होते है।  उदारण के लिए जैसे 10th  हाउस का स्वामी ग्रह,  और 9th हाउस स्वामी गृह एक साथ 10th  हाउस में ही विराजित हो अथवा किसी भी केंद्र स्थान या त्रिकोण स्थान में विराजमान हो तो भी यह राजयोग बनते है या उनके उन स्थानो में बैठ कर उनका एक दूसरे के साथ दृश्टि सम्बन्ध स्थापित हो रहे हो।  


राशि परिवर्तन राज योग / Rashi Exachange(parivartan) Rajyoga - इन योगो का स्रजन तब होता है जब जन्मकुंडली में दो स्थानो के स्वामी राशि परिवर्तन कर रहे हो।  (6 , 8 , 12 ) के स्वामी इस सम्बन्ध में शामिल नही किये जाते।  उदहारण के लिए जैसे  सिंह लग्न की कुंडली में सूर्य पंचम भाव में गुरु की राशि में और पंचम भाव के स्वामी गुरु लग्न  सिंह राशि में राशि परिवर्तन राज योग राजयोग का सृजन करते है। 

विपरीत राज योग/ Vipreet Rajyoga - जन्मकुंडली में जब 6 , 8 , 12 भावो के स्वामी जब आपस में राशि परिवर्तन करके  एक दूसरे के घर में चले जाते है तब यह आपस में विपरीत राजयोग बनाते है , यह राजयोग अपने आप में महान होते है। इन राजयोगों के उदाहरण भी बहुत महान है जिनमे सचिन तेंदुलकर , लता मंगेशकर जैसे लोगो की कुंडलियो में यह योग विराजमान है। 

आखिर चन्द्रमा ही क्यों ?



        दोस्तों आज में हमारी कुंडली में चन्द्रमा देवता के महत्बपूर्ण योगदान के बारे में चर्चा करूँगा। आपने मम्मी  या पापा  को  घर के पास किसी मंदिर के पंडित जी के पास किसी  कार्य को करने या न करने के बारे में महूर्त जानने के लिए उनके पास जाते हुए देखा होगा जैसे कि हम फ्लैट कब ले, गाडी लेने के लिए कौन सा दिन चुना जाए इत्यादि।   इस दौरान आपने पंडित जी को चन्द्रमा की बात करते हुए जरूर सुना होगा की अभी आपकी राशि के हिसाब से चन्द्रमा फलां दिन फलां समय शुभ होगा सो आप उसी बताये हुए समय पर वह कार्य करे।   

         दोस्तों ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी कुंडली में जिस भी राशि में चन्द्रमा हो वही हमारी जन्म राशि कहलाती है और जब भी शुभ कार्य करने के लिए महूर्त  देखा जाता है वह हमारी जन्मराशि के अनुसार देखा जाता है जैसे की हमारी जन्म राशि के अनुसार चन्द्रमा कहाँ और किस नक्षत्र में गोचर कर रहा है। उसके उपरांत ही पंडित जी हमे शुभ या अशुभ महूर्त के बारे में बताते है।     

     
        हिन्दू ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा देवता हमारे मन और मस्तिक्ष के करक है। किसी भी जन्मकुंडली  में चन्द्र की महत्वपूर्ण भूमिका को देखे बिना कुंडली  का विश्लेषण केवल कुंडली के शव के परिक्षण जैसा होता है।  
       
        आज के युग के ज्योतिष शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान श्री के. न राव जी ने भी अपनी कई पुस्तको में चन्द्रमा की स्थिति को जन्मकुंडली विश्लेषण में विशेष स्थान दिया है क्योंकि चन्द्रमा ही हमारे जीवन की जीवन शक्ति है।  किसी  कुंडली में अगर चन्द्रमा की स्थिति अगर क्षीण होती है अथवा  चन्द्रमा पाप प्रभाव लिए हो तो उस व्यक्ति की मानसिक स्थिति को कोई भी अच्छा ज्योतिषी देख कर बता सकता है कि जातक के मन में क्या विचार चलते है तथा जातक की  मनोस्थिति किस प्रकार है । निश्चित ही ऐसे जातक का मन उतावला होगा,  अत्यंत चंचल होगा।  मन को एकाग्र करने में कठनाईयाँ होंगी और जब मन ही एकाग्र नही होगा तो जातक पढ़ने तो बैठेगा लेकिन कुछ ही मिनट बाद उठ जायेगा, जातक सोचेगा की पहले फलां कार्य कर लूँ , पढ़ तो कुछ देर बाद भी लूँगा।  

       इसके अलावा भी चन्द्रमा ज्योतिष शास्त्र में बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।  इसके संबंध में ज्योतिष शास्त्र कहता है कि चन्द्रमा का आकर्षण पृथ्वी पर भूकंप, समुद्री आंधियां, ज्वार भाटा,  तूफानी हवाएं, अति वर्षा, भूस्खलन आदि लाता हैं। रात को चमकता पूरा चांद मानव सहित जीव-जंतुओं पर भी गहरा असर डालता है।  चन्द्रमा से ही मनुष्य का मन और समुद्र से उठने वाली लहरे दोनों का निर्धारण होता है। माता और चंद्र का संबंध भी गहरा होता है। कुंडली में माता की स्थिति को भी चन्द्रमा देवता से देखा जाता है और चन्द्रमा को माता भी कहा जाता है।


      

Saturday 2 August 2014

ज्योतिष के कुछ दोष जिनके उपाय किये जाने चाहिए।



दोस्तों आपने जन्मकुंडली में योग और दोष दोनों के बारे में जरूर सुना होगा। ज्योतिष्य योग और ज्योतिष्य दोष ये दोनों अलग अलग प्रकार की ग्रहों की स्थितिया है जो आपस में उनके कुंडली में मिलने से उनके संयोग बनती है, जिसे हम ज्योतिष्य भाषा में ग्रहों की युति कह कर सम्बोधित करते है। जो कई प्रकार के शुभ और अशुभ योगो का निर्माण करती है। उन शुभ योगो में कुछ राजयोग होते है।  हर व्यक्ति अपनी कुंडली में राजयोग को खोजना चाहता है जोकि ग्रहो के संयोग से बनने वाली एक सुखद अवस्था है।  ईश्वर की कृपया से जिनकी कुंडली में यह सुन्दर राजयोग होते है वह अपनी ज़िंदगी अच्छी प्रकार से व्यतीत कर पाने में समर्थ होते है।  लेकिन इसके विपरीत कुछ  जातक ऐसे भी होते है जिनकी कुंडली में ग्रह कुछ दुषयोगो  का निर्माण करते है। जिनका जातक को यथा सम्भव उपाय करवा लेना चाहिये। आज हम यहाँ ग्रहों के माध्यमो से बनने वाले कुछ दुषयोगो के बारे में बात करेंगे।

            ज्योतिषी इन ग्रहो युतियों को भिभिन् प्रकारों से सम्बोधित करते है। कई ज्योतिष इन्हे दोष कह कर सम्बोधित करते है तो कई योग कह कर बुलाते है .  मेरे विचार से जबतक किन्ही ग्रहों कि युतियां अच्छा फल देने में समर्थ न हो तब तक उसे योग नही कहा जा सकता है।  वह दुषयोग ही कहलाएगी। 


१. चाण्डाल योग या दोष  -  बृहस्पति और राहु जब साथ होते हैं  या फिर एक दूसरे को किन्ही भी  भावो में बैठ कर देखते हो,  तो गुरू चाण्डाल योग निर्माण होता  है। चाण्डाल का अर्थ निम्नतर जाति है। कहा गया कि चाण्डाल की छाया भी ब्राह्मण को या गुरू को अशुद्ध कर देती है। गुरु चंडाल योग को संगति के उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं। जिस प्रकार कुसंगति के प्रभाव से श्रेष्ठता या सद्गुण भी दुष्प्रभावित हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार शुभ फल कारक गुरु ग्रह भी राहु जैसे नीच ग्रह के प्रभाव से अपने सद्गुण खो देते है। जिस प्रकार हींग की तीव्र गंध केसर की सुगंध को भी ढक लेती है और स्वयं ही हावी हो जाती है, उसी प्रकार राहु अपनी प्रबल नकारात्मकता के तीव्र प्रभाव में गुरु की सौम्य, सकारात्मकता को भी निष्क्रीय कर देता है। राहु चांडाल जाति, स्वभाव में नकारात्मक तामसिक गुणों का ग्रह है, इसलिए इस योग को गुरु चांडाल योग कहा जाता है। जिस जातक की कुंडली में गुरु चांडाल योग यानि कि गुरु-राहु की युति हो वह व्यक्ति क्रूर, धूर्त, मक्कार, दरिद्र और कुचेष्टाओं वाला होता है। ऐसा व्यक्ति षडयंत्र करने वाला, ईष्र्या-द्वेष, छल-कपट आदि दुर्भावना रखने वाला एवं कामुक प्रवत्ति का होता है, उसकी अपने परिवार जनो से भी नही बन पाती तथा  वह खुद को अकेला महसूस करने लग जाता है और उसका मन हमेशा व्याकुल रहता है।  

          उपाय  -  गुरु चांडाल योग के जातक के जीवन पर जो भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हो उसे नियंत्रित करने के लिए जातक को भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। एक अच्छा ज्योतिषी कुण्डली देख कर यह बता सकता है कि हमे गुरु को शांत करना उचित रहेगा या राहु के उपाय जातक से करवाने पड़ेंगे।  अगर चाण्डाल दोष गुरु या गुरु के मित्र की राशि या गुरु की उच्च राशि में बने तो उस स्थिति में हमे  राहु देवता के उपाय करके उनको ही शांत करना पड़ेगा ताकि गुरु हमे अच्छे प्रभाव दे सके।  राहु देवता की शांति के लिए मंत्र-जाप पुरे होने के बाद हवन  करवाना चाहिए तत्पश्चात दान इत्यादि करने का विधान बताया गया है.  अगर ये दोष गुरु की शत्रु राशि में बन रहा हो तो हमे गुरु और राहु  देवता दोनों के उपाय करने चाहिए गुरु-राहु से संबंधित मंत्र-जाप, पूजा, हवन तथा दोनों से सम्बंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।

२. अमावस्या योग या दोष -  जब सूर्य और चन्द्रमा दोनों  कुण्डली के एक ही घर में विराजित हो जावे तब इस दोष का निर्माण होता है। जैसे की आप सब जानते है की अमावस्या को चन्द्रमा किसी को दिखाई नही देता उसका प्रभाव क्षीण हो जाता है। ठीक उसी प्रकार किसी जातक की कुंडली में यह दोष बन रहा हो तो उसका चन्द्रमा प्रभावशाली नही रहता। और चन्द्रमा को ज्योतिष में कुण्डली का प्राण माना जाता है और जब चन्द्रमा ही प्रभाव हीन हो जाए तो यह किसी भी जातक के लिए कष्टकारी हो जाता है क्योंकि यही हमारे मन और मस्तिक्ष का करक ग्रह है। इसलिए अमावस्या दोष को महर्षि पराशर जी ने बहुत बुरे योगो में से एक माना है, जिसकी व्याख्या उन्होंने अपने ग्रन्थ बृहत पराशर होराशास्त्र में बड़े विस्तार से की है तथा उसके उपाय बताये है।  जोकि में आगे अपने ब्लॉग पर  कुछ समय बाद प्रकाशित करूँगा।  ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि सूर्य और चन्द्र दो भिन्न तत्व के ग्रह है सूर्य अग्नि तत्व और चन्द्र जल तत्त्व, इस प्रकार जब दोनों मिल जाते है तो वाष्प बन जाती है कुछ भी शेष नही रह जाता।


ग्रहण योग या दोष -  जब सूर्य या चन्द्रमा की युति राहू या केतु से हो जाती है तो इस दोष का निर्माण होता है।  चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण दोष की अवस्था में जातक डर व घबराहट महसूस करता है। चिडचिडापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है। माँ के सुख में कमी आती है।  किसी भी कार्य को शुरू करने के बाद उसे सदा अधूरा छोड़ देना व नए काम के बारे में सोचना इस योग के लक्षण हैं।  मैंने अपने ३ साल के छोटे से अनुभव में ऐसी कई कुण्डलियाँ देखी  है जिनमे यह योग बन रहा था और जातक किसी न किसी फोबिया या किसी न किस प्रकार का डर  से ग्रसित थे। जिन लोगो में दिमाग में हमेशा यह डर लगा रहता है, उदाहरण के लिए समझे  कि "मैं   पहड़ो पर जैसे मनाली या शिमला घूमने जाऊँगा तो बस पलट जाएगी।  रेल  से वहां जाऊंगा तो रेल में बम बिस्फोट हो जायेगा।" इस प्रकार के सारे नकारात्मक विचार इसी दोष के कारण मन में आते है। अमूमन किसी भी प्रकार के फोबिया अथवा किसी भी मानसिक बीमारी जैसे डिप्रेसन ,सिज्रेफेनिया आदि इसी दोष के प्रभाव  के कारण माने गए हैं यदि यहाँ चंद्रमा अधिक दूषित हो जाता है या कहें अन्य पाप प्रभाव में भी होता है, तो मिर्गी ,चक्कर व पूर्णत: मानसिक संतुलन खोने का डर भी होता है।  सूर्य द्वारा बनने वाला ग्रहण योग पिता सुख में कमी करता है।  जातक का शारीरिक ढांचा कमजोर रह जाता है।  आँखों व ह्रदय सम्बन्धी रोगों का कारक बनता है। सरकारी नौकरी या तो मिलती नहीं या उसको निभाना कठिन होता है डिपार्टमेंटल इन्क्वाइरी, सजा, जेल, परमोशन में रुकावट सब इसी दोष का परिणाम है।       

         उपाय  - जरूरी नही की हम हज़ारो रुपए लगा कर, भारी भरकम उपाय कर के ही ग्रहों का या भगवन का पूजन कर उपाय करे जैसे की आजकल ज्योतिष बताते है। बरन हम छोटे छोटे उपाय करके भी भगवन तथा ग्रहों को प्रसन्न कर सकते है। बस उस किये गए उपाय में  सच्ची श्रधा भाव तथा उस परम पिता परमेश्वर में विश्वास होना अनिवार्य है। सूर्य देवता के लिए और चन्द्र देवता के लिए भी हम यह उपाय कर उन अपनी कुण्डली में उन्हें बलवान बना सकते है।  
         सूर्य से बने ग्रहण दोष में या कुण्डली  में सूर्य देव के कमजोर होने पर हमे सूर्य देवता को प्रीतिदिन अर्घ्य देना चाहिए उसमे थोड़ा गुड, कुमकुम तथा कनेर के पुष्प या कोई भी लाल रंग पुष्प  डाले तथा सूर्य भगवान को यह मंत्र "ॐ  घृणि  सूर्याय नमः " या  "ॐ ह्रां  ह्रीं  ह्रौं सः सूर्याय नमः" जप ते  हुए अर्घ्य दे। इसके अलावा अति प्राचीन और सर्वमान्य आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ सूर्य देवता की पूजा करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण तथा सर्वोपरि माना गया है तथा यह अपने प्रभाव जातक को शीघ्र ही अनुभव में करवा देता है। 
        चन्द्रमा और राहु या केतु से बनने वाले चन्द्र ग्रहण दोष के लिए सबसे अच्छा उपाय शिव जी भगवन की पूजा उनका प्रीतिदिन जल से कच्चे दूध से अभिषेक करना अति लाभदायक सिध्द होता है क्योंकि चन्द्रमा शिव जी भगवान की जटाओं में विराजमान है तथा शिव जी भगवन की पूजा से अति प्रस्सन होता है। इसके अलावा चन्द्रमा देवता के यन्त्र को घर में पूजा की जगह विराजित करे  और अपनी पूजा के समय (सुबह और शाम) यन्त्र का भी धूप दीप से पूजन करे  चन्द्रमा के मंत्र  "ॐ श्राम श्रीम् श्रोम सः चन्द्रमसे नमः " का जाप  करे 

४. केमद्रुम योग या दोष - चन्द्रमा से बनने वाला ये दोष अपने आप में महासत्यानाशी दोष है यदि चंद्रमा से द्वितीय और द्वादश दोनों स्थानों में कोई ग्रह नही हो तो केमद्रुम नामक या दोष  बनता है या फिर आप इसे इस प्रकार समझे चन्द्रमा कुंडली के जिस भी घर में हो, उसके आगे और पीछे के घर में कोई ग्रह न हो। इसके अलावा चन्द्रमा की किसी ग्रह से युति न हो या चंद्र को कोई शुभ ग्रह न देखता हो तो कुण्डली में केमद्रुम दोष  बनता है। केमद्रुम दोष के संदर्भ में छाया ग्रह राहु केतु की गणना नहीं की जाती है।  जिस भी  व्यक्ति की कुण्डली में यह दोष बनता हो उसे सजग हो जाना चाइये। 
इस दोष  में उत्पन्न हुआ व्यक्ति जीवन में कभी न कभी  किसी न किस पड़ाव पर दरिद्रता एवं संघर्ष से ग्रस्त होता है।  अपने ज्योतिष के अनुभव में मेने ऐसे ऐसे व्यक्ति देखे है जिन्होंने बड़ी मेहनत करके पैसा कमाया लेकिन कुछ एक सालो बाद सब बर्बाद हो गया,  तो यह इसी दोष  कार्य का है। जीवन में सब कुछ वापिस ले लेना और फिर शून्य स्थिति में लाना भी  इसी दोष का कार्य है।  
इसके साथ ही साथ ऐसे व्यक्ति अशिक्षित या कम पढा लिखे , निर्धन एवं मूर्ख भी हो सकते  है।  यह भी कहा जाता है कि केमदुम योग वाला व्यक्ति वैवाहिक जीवन और संतान पक्ष का उचित सुख नहीं प्राप्त कर पाता है।  वह सामान्यत: घर से दूर ही रहता है।  व्यर्थ बात करने वाला होता है कभी कभी उसके स्वभाव में नीचता का भाव भी देखा जा सकता है।  
           उपाय  - केमद्रुम योग के अशुभ प्रभावों को दूर करने हेतु कुछ उपायों को करके इस योग के अशुभ प्रभावों को कम करके शुभता को प्राप्त किया जा सकता। सोमवार के दिन भगवान शिव के मंदिर जाकर शिवलिंग का जल व  गाय के कच्चे दूध से अभिषेक करे व पूजा करें।  भगवान शिव ओर माता पार्वती का पूजन करें।  रूद्राक्ष की माला से शिवपंचाक्षरी मंत्र " ऊँ नम: शिवाय" का जप करें ऎसा करने से  केमद्रुम योग के अशुभ फलों में कमी आएगी।  घर में दक्षिणावर्ती शंख स्थापित करके नियमित रुप से श्रीसूक्त का पाठ करें।  दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उस जल से देवी लक्ष्मी की मूर्ति को स्नान कराएं तथा चांदी के श्रीयंत्र में मोती धारण करके उसे सदैव अपने पास रखें  या धारण करें। 

५. मंगली योग या दोष - हिन्दू ज्योतिष में मंगल को लग्न, द्वितीय भाव में (भवदीपिका नामक ग्रंथ), चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में दोष पूर्ण माना जाता है।  इन भावो में उपस्थित मंगल मंगली दोष का निर्माण करता है।  इन भावो में मंगल को  वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा गया है।  जन्म कुण्डली में इन पांचों भावों में मंगल के साथ जितने क्रूर ग्रह बैठे हों मंगल उतना ही दोषपूर्ण होता है जैसे दो क्रूर गृह साथ होने पर दोष दुगुना हो जाता है। 
          द्वितीय भाव में (भवदीपिका नामक ग्रंथ) में विराजित मंगल को मंगली दोष बतया गया है पर अधिकांश ज्योतिषी द्वितीय भाव में मंगली दोष नही मानते क्योंकि हिन्दू ज्योतिष केवल एक ग्रंथ को आधार मान कर निर्णय नही लेता, इसके लिए अनेको ग्रंथो को पड़ा और  समझा जाता है। 
          यह दोष शादी शुदा ज़िंदगी के लिए कष्टकारी माना जाता है।  अगर मंगली पुरुष या स्त्री  का विवाह मंगली ही पुरुष या स्त्री से न हो तो यह वैवाहिक जीवन को कलह पूर्ण बना देते है।  कई लोगो ने भ्रांतिया फैला रखी है कि मंगली का विवाह मंगली से न हो तो दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है जो बात सर्वथा गलत है। मृत्यु  होने के लिए अकेला मंगल ही जिम्मेदार नही होता उसके साथ कुंडली में और भी कई स्थितियां होती है जैसे लग्नेश का कमजोर होना, मृत्यु स्थान और लग्न का राशि परिवर्त्तन इत्यादि।  हाँ यह बात मानी जा सकती है की मंगली का विवाह अगर मंगली से न हो तो जीवन में कई बार मृत्यु तुल्य कष्ट भोगना पड़ जाता है।  
           उपाय  - मंगली दोष पहला उपाय तो यही है की मंगली व्यक्ति का मंगली से ही विवाह संस्कार करवाया जाये।  अगर प्रेम विवाह हो रहा हो या मंगली जीवनसाथी खोजने में परेशानी आ रही हो तो इस के लिए शास्त्रो में कई प्रकार के उपाय बतलाये गए है जैसे कुम्भ विवाह या गट विवाह। भगवान शिव शंकर और माता पार्वती के पूजा जो की एक विधि से की जाती है उसको काशी विश्वनाथ के मंदिर में करवाये ।  उदाहरण के लिए आप श्रीमती ऐश्वर्या राय और श्री अभिषेक बच्चन की शादी से पहले हुए संस्कारो को याद करे।  




हनुमान जी की पूजा करे प्रीतिदिन करे, हनुमान चालीसा का पाठ करे।  अगर कुंडली में मंगल देवता ज्यादा मारक हो गए हो तो मंगल देवता के श्री मंगलनाथ मंदिर (उज्जैन ) जोकि मंगल समन्धी  हर प्रकार के दोषो के निवारण के लिए अत्यंत प्राचीन मंदिर है। वहां  जाकर उनकी पूजा वहां विधि विधान से करवाये।   

              इस प्रकार हमने ज्योतिष में बनने वाले कुछ अशुभ योगों के बारे में बात की, ज्योतिष में केवल यही अशुभ योग नही होते इसके अलवा भी कई प्रकार के और  अशुभ योग होते है जो जातक को जीवन भर परेशान करते रहते है।  जिनका पता हम जातक की जन्मपत्रिका देख कर सकते है तथा अच्छे ज्योतिषाचार्य से सलाह लेकर उनका यथा संभव उपाय कर सकते है।   

कौन सा उपयुक्त रत्न हमे धारण करना चाहिये !




कौन सा उपयुक्त रत्न हमे धारण करना चाहिये !

       वर्तमान युग में जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति और गोचर में ग्रहों की चाल जब किसी को परेशान करती है तो हर कोई व्यक्ति इस समस्या से जल्द से जल्द आराम पाना चाहता है.  इस समस्या से पार पाने के लिए प्राचीन ऋषि मुनियों कई उपाय बताये है जिनमे से कुछ इस प्रकार है जैसे ग्रहों  और उनसे संबंधी देवताओ की पूजा-पाठ, मंत्र-जाप, दान और रत्न  इत्यादि। किन्तु  वर्त्तमान समय में  रत्नो को अधिक महत्ब प्राप्त है क्योंकि आज कल कोई इतनी पूजा पाठ, दान इत्यादि नही करना चाहता। कुछ लोग रत्न का स्टेटस सिंबल के रूप में प्रयोग करते है जो की सर्वथा गलत है. रत्न देखने में सुन्दर तो  लगते ही है,  साथ ही यह बहुत शक्तिशाली भी होते है. लेकिन  इस विषय में मतभेद भी बढते जा रहे हैं फिलहाल हमारे यहाँ रत्नों को लेकर जो विचारधाराएँ चल रही हैं वो इस प्रकार हैं.  


१. ज्योतिषियों का एक वर्ग वह है जो ये मान कर चलता है की रत्न जातक को सम्बंधित नीच अथवा मारक ग्रह के प्रभाव से बचाने के लिए होते हैं.


२. तो वहीं ज्योतिषियों का एक वर्ग जातक को सिर्फ उन्ही ग्रहो के रत्न धारण करने का परामर्श देते है, जो उसकी जन्मपत्रिका में योगकारक हो तथा कमजोर पड़ रहै हों.


३. ज्योतिषियों का एक तबका सिर्फ लग्नेश, पंचमेश और भाग्येश के रत्न धारण करने की सलाह देते है क्योंकि ये ग्रह कुंडली में खुद योगकारक होते है और इनका एक जातक की कुंडली में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है. 


            अब कौन सी ज्योतिष्य विचारधारा गलत है या कौन सी सही है का निर्णय हम नही कर सकते क्योंकि हर विचारधारा का ज्योतिषी दूसरे को गलत साबित करने के लिए पचासों तर्क दे सकता है और वर्तमान में दे ही रहा है. सर्वप्रथम ये निर्णय एक मत से होना चाहिए की रत्न ग्रह की किस अवस्था में पहना जाए. 


          मैंने ऊपर ये बतया कि लग्नेश, पंचमेश और भाग्येश का एक जातक की कुंडली में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है सो यह योगकारक है, इनके रत्न हमे अवश्य धारण करने चाइये अगर ये कुंडली में निर्बल पड़ रहे हो और उनको बल देने की जरूरत हो. इनके आलावा भी अन्य ग्रह योगकारक की श्रंखला में आते है जैसे केंद्र और त्रिकोण का अधिपति ग्रह, अगर यह निर्बल पड़ रहा हो तो उनके भी रत्न हमे धारण करने चाइये।


           यह  तो  हमने  विद्वानो  के  रत्नो  के  धारण  करवाने  के विचार और  उनकी  अलग अलग मान्यताओं  के बारे में बात की,  लेकिन  कई  नकली  ज्योतिषी  जो  मात्र  ज्योतिषी  होने  का  ढोंग  करते आपको  टीवी  चैनल पर  बड़े  बड़े  तिलक  और  माला  धारण  किये  दिख  जाते है।  मेरी  समझ  में  यह  बात नही  आती  की  यह  लोग  मात्र  ३० से ४०  सेकण्ड  की  फोन  कॉल पर  कुंडली  का  विश्लेषण  करके  रत्न  भी  सुझा  देते है  और फिर  अगले  ही  मिनट  दूसरी  कॉल  का  उत्तर  भी  दे  देते  है. यही  वो लोग हैं जो सूर्य के नीच होने पर माणिक और गुरु के नीच होने पर पुखराज पहनने की सलाह देते हैं और केवल राशि स्वामी का रत्न धारण करने की सलाह बेहिचक दे देते हैं. राशि तो एक पान की दुकान चलाने वाले और एक ज्वैलरी शोरुम के मालिक की भी एक हो सकती है, लेकिन उनकी जन्मपत्रिका में ग्रहो के योग जरूर अलग होंगे, उनकी स्थिति अलग होगी।  उनकी स्थिति निर्धारण करके ही एक अच्छा ज्योतिषी जातक को उचित रत्न धारण करने का परामर्श देता है. 
          इसको एक आसान उदहारण से समझने का प्रयास करे जैसे आप अँधेरे में है तो आपको उस अँधेरे को दूर करें के लिए प्रकाश की जरूरत होगी। ठीक इसी प्रकार अगर हमारी  कुंडली के जो ग्रह कारक नही है (जो प्रकाश नही दे सकते) उनके रत्न न पहन कर हमे उन ग्रहों के रत्न धारण करने चाहिये जो करक है जो हमे प्रकाश देने में योग्य है लेकिन कमजोर पड़ रहे है, उनकी इस कमजोरी को हम रत्न के माधय्म से दूर कर सकते है.