दोस्तों आज में हमारी कुंडली में चन्द्रमा देवता के महत्बपूर्ण योगदान के बारे में चर्चा करूँगा। आपने मम्मी या पापा को घर के पास किसी मंदिर के पंडित जी के पास किसी कार्य को करने या न करने के बारे में महूर्त जानने के लिए उनके पास जाते हुए देखा होगा जैसे कि हम फ्लैट कब ले, गाडी लेने के लिए कौन सा दिन चुना जाए इत्यादि। इस दौरान आपने पंडित जी को चन्द्रमा की बात करते हुए जरूर सुना होगा की अभी आपकी राशि के हिसाब से चन्द्रमा फलां दिन फलां समय शुभ होगा सो आप उसी बताये हुए समय पर वह कार्य करे।
दोस्तों ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी कुंडली में जिस भी राशि में चन्द्रमा हो वही हमारी जन्म राशि कहलाती है और जब भी शुभ कार्य करने के लिए महूर्त देखा जाता है वह हमारी जन्मराशि के अनुसार देखा जाता है जैसे की हमारी जन्म राशि के अनुसार चन्द्रमा कहाँ और किस नक्षत्र में गोचर कर रहा है। उसके उपरांत ही पंडित जी हमे शुभ या अशुभ महूर्त के बारे में बताते है।
हिन्दू ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा देवता हमारे मन और मस्तिक्ष के करक है। किसी भी जन्मकुंडली में चन्द्र की महत्वपूर्ण भूमिका को देखे बिना कुंडली का विश्लेषण केवल कुंडली के शव के परिक्षण जैसा होता है।
आज के युग के ज्योतिष शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान श्री के. न राव जी ने भी अपनी कई पुस्तको में चन्द्रमा की स्थिति को जन्मकुंडली विश्लेषण में विशेष स्थान दिया है क्योंकि चन्द्रमा ही हमारे जीवन की जीवन शक्ति है। किसी कुंडली में अगर चन्द्रमा की स्थिति अगर क्षीण होती है अथवा चन्द्रमा पाप प्रभाव लिए हो तो उस व्यक्ति की मानसिक स्थिति को कोई भी अच्छा ज्योतिषी देख कर बता सकता है कि जातक के मन में क्या विचार चलते है तथा जातक की मनोस्थिति किस प्रकार है । निश्चित ही ऐसे जातक का मन उतावला होगा, अत्यंत चंचल होगा। मन को एकाग्र करने में कठनाईयाँ होंगी और जब मन ही एकाग्र नही होगा तो जातक पढ़ने तो बैठेगा लेकिन कुछ ही मिनट बाद उठ जायेगा, जातक सोचेगा की पहले फलां कार्य कर लूँ , पढ़ तो कुछ देर बाद भी लूँगा।
इसके अलावा भी चन्द्रमा ज्योतिष शास्त्र में बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके संबंध में ज्योतिष शास्त्र कहता है कि चन्द्रमा का आकर्षण पृथ्वी पर भूकंप, समुद्री आंधियां, ज्वार भाटा, तूफानी हवाएं, अति वर्षा, भूस्खलन आदि लाता हैं। रात को चमकता पूरा चांद मानव सहित जीव-जंतुओं पर भी गहरा असर डालता है। चन्द्रमा से ही मनुष्य का मन और समुद्र से उठने वाली लहरे दोनों का निर्धारण होता है। माता और चंद्र का संबंध भी गहरा होता है। कुंडली में माता की स्थिति को भी चन्द्रमा देवता से देखा जाता है और चन्द्रमा को माता भी कहा जाता है।
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