Sunday 3 August 2014

ज्योतिष और राजयोग

एक बार फिर से आप सभी का अभिनन्दन।  दोस्तों मैंने अपनी पिछली पोस्ट में बात की थी कुछ ज्योतिषय दोषो को बारे में जिनके हमे यथा संभव उपाय जरूर करवा लेने चाहिए अन्यथा उनके परिणाम दुष्कर होते है। इसी श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए आज मैं आपको ज्योतिष्य योग व् राजयोगों के बारे में कुछ बताऊंगा क्योंकि राजयोग या ऐसे ही समृद्धिपर्त योगो को हर व्यक्ति अपनी जन्मपत्रिका में खोजता रहता है जैसे की यह कैसे बनते है और इनका क्या प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है इत्यादि।  सबसे पहले में यह साफ़ बता दूँ की राजयोगों से प्रयाय राजा बनने से नही है। राजयोगों का अर्थ होता है अपने सम्बंधित कार्य में या अपने जीवन में राजा तुल्य होना एवंम राज तुल्य मान सम्मान पाना।

१. गजकेसरी योग / Gajkesari Yoga -  गजकेसरी योग का नाम आपने बहुत सुना होगा। जोकि ज्योतिष में बनने वाले कुछ महान राजयोगों में से एक है।  इसके सृजन का कार्य गुरु एवम चन्द्रमा देवता का है , जब भी कुंडली के किसी भाव में गुरु और चन्द्रमा एक साथ बैठ जाते है या एक दूसरे से केंद्र में होते है तब इस योग का निर्माण होता है।
इस योग में जन्मा जातक दैवीय गुण लेकर पृथ्वी पर आता है। धार्मिक कर्मकांड में रूचि रखने वाला, ईश्वर को मानने वाला होता है। उसका मन साफ़ होता है तथा वह धोखा धडी करना, किसी का हक़ मारना इत्यादि कार्यो से घृणा करने वाला होता है।  ऐसे व्यक्ति अपने जीवन के  ३० वर्ष पूरे होने के जाने के बाद बहुत ज्यादा उन्नति करते हुए आपको दिख जाएंगे।  कर्क राशि में बनने वाला गजकेसरी योग सर्वोत्तम होता है तथा यह व्यक्ति को जीवन के सर्वोच्च स्तर तक पंहुचा देता है क्योंकि यहां गुरु देवता की उच्च राशि होती है तथा चन्द्रमा देवता की यह स्व-राशि होती है।  कर्क राशि का गजकेसरी योग प्राय: बहुत काम जातको की कुंडली में देखने को मिलता है।  इस योग का निर्माण यू ही नही हो जाता, पिछले जन्म में जातक ने बहुत अच्छे कर्म किये होंगे तबी यह योग उसे अपने प्रारभ्ध में इस जन्मं में मिला होता है।  

२. पंचमहापुर्ष योग / Panch Mahapurusha Yoga - पंचमहापुर्ष योग ५ ग्रहों के दवारा बनने वाला योग होता है। जिसे मंगल, बुध, गुरु , शुक्र और शनि देवता कुंडली के किसी भी एक केंद्र स्थान (1,4,7,10) में से  अपनी स्व-राशि , अपनी मूलत्रिकोण राशि या  अपनी उच्च राशि में बनाते है।  

(क) रूचक योग / Ruchaka Yoga - मंगल से बनने वाला यह योग अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण योग है, कुंडली के केंद्र स्थान 1,4,7,10 में मंगल देवता इस योग का निर्माण करते है।  1,4,7 भाव जहाँ मंगल देव मंगली योग का भी निर्माण करते है लेकिन जब इन घरो में मंगल जब अपनी स्व-राशि , अपनी मूलत्रिकोण राशि या  अपनी उच्च राशि बैठ हो तो वह रूचक योग का सृजन करते है जोकि व्यक्ति को उसके वर्किंग फील्ड में एक राजा की तरह सम्मान प्राप्त करवा देता है।  इसके अलावा ऐसा व्यक्ति दुसरो से अपनी बात मनवाने में समर्थ होते है।  अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते है। इसके अलावा मंगल देव जातक को साहसी कार्य जैसे आर्मी, पोलिस फ़ोर्स , आर्म्ड फोर्सेज आदि से जोड़ते है। मेडिकल, मेडिशन, सर्जरी डॉक्टरी पैसा, बड़े प्रॉपर्टी डीलर, रियल स्टेट का व्यवसाय इत्यादि से भी जातक को जोड़ देते है।  आपने अक्सर कुछ मंगली व्यक्तियो को  देखा होगा जो अपने जीवन में बहुत उन्नति करते है उसका कारण यही योग होता है। 

(ख ) भद्र योग / Bhadra Yoga - बुध देवता द्वारा बनने वाला भद्र योग जातक को पत्रकारिता, टीचिंग, लायस्निंग, लेखन  व्  ज्योतिष विद्या में बहुत अधिक मान सम्मान दिलवा देता है तथा इन जातको में सामान्य से अधिक बुद्धि होती है। इस योग में जन्मे जातक की कीर्ति अमर हो जाती है तथा वह मरने के बाद भी उसकी उपलब्दियो व् उसके ज्ञान के लिए याद किया जाता है। 

(ग) हंस योग / Hans Yoga - देवताओ के गुरु बृहस्पति के द्वारा बनने वाला हंस योग जातक को  विद्वान और ज्ञानी बनता है. उसमें न्याय करने का विशेष गुण होता है, तथा हंस के समान वह सदैव शुभ आचरण करता है। उसमें सात्विक गुण पाये जाते है। भगवान में उसकी विशेष आस्था होती है तथा पूर्णत आस्तिक होता है। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में हर सुख सुविधा को भोगते है।  

(घ) मालव्य योग / Malavya Yoga -  असुरो के गुरु शुक्राचार्य को कई विद्याओ में देवताओ के गुरु बृहस्पति से भी ज्यादा निपुणता प्राप्त है। यही शुक्राचार्य शुक्र देवता के नाम से जाने जाते है। सम्पूर्ण 64 कलाओं के स्वामी शुक्र देवता पूरी जन्मकुंडली में केवल अकेले खुद ही अच्छी स्थिति में हो तो  व्यक्ति को सारे ऐश्वर्य भोग विलास दे देते है। मैंने ऐसी ऐसी जन्मकुंडली भी देखी है जिनमे अकेले उच्च के शुक्र देवता ने जातक को सम्पूर्ण ऐश्वर्य दे रखा है, सारी भोग विलासिता के चीज़े उनको उपलब्ध करवाई हुई है। दोस्तों इसका मतलब यह मत लेना की हम तो कर्म करेंगे ही नही अकेला शुक्र देवता सब कुछ कर देगा ऐसा कतई भी संभव नही है दोस्तों। भाग्य तो लंगड़ा है उसको कर्मो की वैशाखी से चलाया जाता है। कर्म सिद्धांत के बारे में एक अलग से पोस्ट में चर्चा करूँगा। होटल्स, रेस्तरां,  फैशन और फैशन डिजाइनिंग, नृत्य, एक्टिंग, सिंगिंग, ब्यूटी पार्लर, बार ऐंड क्लब यह सब शुक्र देवता से सम्बंधित कार्य है जिनका कुछ का ही का वर्णन में यहाँ कर रहा हूँ। कुंडली में शुक्र देवता केंद्र या त्रिकोण में उच्च राशि के हो तो व्यक्ति को परम ऐश्वर्य सिद्ध करा ही देते है।  

(ङ) शश योग / Sasha Yoga - शश योग का  निर्माण शनि महाराज कुंडली के केंद्र स्थानो में से किसी एक केंद्र स्थान में करते है। 
यह योग अपने आप में ही काफी मान्यता प्राप्त राज योग है। भारत के भूतवपूर्ण प्रधानमंत्री श्री अटल विहारी वाजपेयी की कुंडली में यह योग विराजमान है।  हालंकि शनि का केंद्र में होने का एक साइड इफ़ेक्ट जरूर है शनि महाराज जब भी अपने घर को छोड़ कर किसी भी घर को देखते है तो उसका सुख ख़त्म ही कर देते है।  जैसे की श्री अटल विहारी वाजपेयी और श्री नरेंद्र मोदी दोनों की कुण्डलियों में शनि 10 हाउस में बैठ कर अपनी दशवीं दृश्टि से पत्नी के घर को देखते है तो दोनों को ही पत्नी का सुख नसीव नही हो पाया।  हालंकि एक की शादी तो हो गयी लेकिन पत्नी से दुरी ही रही वही अटल जी की शादी ही नही हुई। तो यह कार्य शनि महाराज का है। लेकिन अगर शनि देव खुद ही 7 घर के स्वामी हो और उसे देखे या फिर वहां शश योग का निर्माण करे तो स्थिति बदल जाती है और वहां पति पत्नी में अलगाव की स्थिति नही आती।एक अकेले शश योग पर एक किताब लिखी जा सकती है, मैं यहाँ संक्षिप्त में ही चर्चा करूँगा। मैंने अपने एक मित्र की जन्मपत्रिका देखी वह मेरे साथ ही मेरी कंपनी में गुडगाँव जॉब करता था , हांलांकि हमारी कंपनी भी बहु- राष्टीय (MNC) कम्पनी है। लेकिन उसकी कुंडली लग्न के स्वामी हो कर शनि महाराज अपनी उच्च राशि में शश योग का निर्माण कर रहे थे। मेने उसको बोल दिया था की तुम्हे गूगल या किसी बड़ी कंपनी में ट्राय करना चाइये, उसने बताया की वह ट्राय कर रहा है, मैने उसको बता दिया की तुम्हारा सिलेक्शन होने से कोई नही रोक सकता बस शनि महाराज का प्रत्यंतर आने दो , जैसे ही शनि का प्रत्यंतर आया उसके दो दिन बाद ही उसकी कॉल विश्व की प्रितिष्ठित कंपनी से आई और आज वह Adobe में कार्य कर रहा है। 

          दोस्तों मैंने यह बात की सर्वमान्य कुछ राजयोगों के बारे में अब हम बात करेंगे ज्योतिष के पितामह महिर्षि पराशर द्वारा बताये गए केंद्र और त्रिकोण के सम्बन्ध से बनने वाले राजयोगो के बारे मे,  इन योगो के बारे में लघु पाराशरी पुस्तक लिखी गयी है और इनके बारे में भी मैं संक्षेप ही बता पाउँगा क्योंकि जिन विषयो पर पुस्तकें लिखी जा चुकी हों, उनको ब्लॉग पर लिख पाना संभव नही है। लेकिन फिर भी में संक्षेप में अपने दोस्तों को बताने का प्रयास करूँगा।    

केंद्र त्रिकोण सम्बन्धी राजयोग / Kendra Trikone Rajyoga  - इसके लिए पहले हमे केंद्र स्थानो  तथा त्रिकोण स्थानो को जानना पड़ेगा।  केंद्र स्थान  1, 4, 7, 10 होते है जबकि त्रिकोण स्थान 1, 5, 9  होते है। केंद्र को विष्णु स्थान तथा त्रिकोण को लक्ष्मी स्थान कहा जाता है। जब भी जन्मकुंडली में केंद्र का स्वामी गृह, त्रिकोण के स्वामी गृह के साथ केंद्र या त्रिकोण भाव में विराजमान हो अथवा दृष्टि सम्बन्ध बनता हो। तब इन सुन्दर राजयोगो का स्रजन होता है।  यह अपने आप में बहुत शक्तिशाली होते है।  उदारण के लिए जैसे 10th  हाउस का स्वामी ग्रह,  और 9th हाउस स्वामी गृह एक साथ 10th  हाउस में ही विराजित हो अथवा किसी भी केंद्र स्थान या त्रिकोण स्थान में विराजमान हो तो भी यह राजयोग बनते है या उनके उन स्थानो में बैठ कर उनका एक दूसरे के साथ दृश्टि सम्बन्ध स्थापित हो रहे हो।  


राशि परिवर्तन राज योग / Rashi Exachange(parivartan) Rajyoga - इन योगो का स्रजन तब होता है जब जन्मकुंडली में दो स्थानो के स्वामी राशि परिवर्तन कर रहे हो।  (6 , 8 , 12 ) के स्वामी इस सम्बन्ध में शामिल नही किये जाते।  उदहारण के लिए जैसे  सिंह लग्न की कुंडली में सूर्य पंचम भाव में गुरु की राशि में और पंचम भाव के स्वामी गुरु लग्न  सिंह राशि में राशि परिवर्तन राज योग राजयोग का सृजन करते है। 

विपरीत राज योग/ Vipreet Rajyoga - जन्मकुंडली में जब 6 , 8 , 12 भावो के स्वामी जब आपस में राशि परिवर्तन करके  एक दूसरे के घर में चले जाते है तब यह आपस में विपरीत राजयोग बनाते है , यह राजयोग अपने आप में महान होते है। इन राजयोगों के उदाहरण भी बहुत महान है जिनमे सचिन तेंदुलकर , लता मंगेशकर जैसे लोगो की कुंडलियो में यह योग विराजमान है। 

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