Saturday 2 August 2014

कौन सा उपयुक्त रत्न हमे धारण करना चाहिये !




कौन सा उपयुक्त रत्न हमे धारण करना चाहिये !

       वर्तमान युग में जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति और गोचर में ग्रहों की चाल जब किसी को परेशान करती है तो हर कोई व्यक्ति इस समस्या से जल्द से जल्द आराम पाना चाहता है.  इस समस्या से पार पाने के लिए प्राचीन ऋषि मुनियों कई उपाय बताये है जिनमे से कुछ इस प्रकार है जैसे ग्रहों  और उनसे संबंधी देवताओ की पूजा-पाठ, मंत्र-जाप, दान और रत्न  इत्यादि। किन्तु  वर्त्तमान समय में  रत्नो को अधिक महत्ब प्राप्त है क्योंकि आज कल कोई इतनी पूजा पाठ, दान इत्यादि नही करना चाहता। कुछ लोग रत्न का स्टेटस सिंबल के रूप में प्रयोग करते है जो की सर्वथा गलत है. रत्न देखने में सुन्दर तो  लगते ही है,  साथ ही यह बहुत शक्तिशाली भी होते है. लेकिन  इस विषय में मतभेद भी बढते जा रहे हैं फिलहाल हमारे यहाँ रत्नों को लेकर जो विचारधाराएँ चल रही हैं वो इस प्रकार हैं.  


१. ज्योतिषियों का एक वर्ग वह है जो ये मान कर चलता है की रत्न जातक को सम्बंधित नीच अथवा मारक ग्रह के प्रभाव से बचाने के लिए होते हैं.


२. तो वहीं ज्योतिषियों का एक वर्ग जातक को सिर्फ उन्ही ग्रहो के रत्न धारण करने का परामर्श देते है, जो उसकी जन्मपत्रिका में योगकारक हो तथा कमजोर पड़ रहै हों.


३. ज्योतिषियों का एक तबका सिर्फ लग्नेश, पंचमेश और भाग्येश के रत्न धारण करने की सलाह देते है क्योंकि ये ग्रह कुंडली में खुद योगकारक होते है और इनका एक जातक की कुंडली में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है. 


            अब कौन सी ज्योतिष्य विचारधारा गलत है या कौन सी सही है का निर्णय हम नही कर सकते क्योंकि हर विचारधारा का ज्योतिषी दूसरे को गलत साबित करने के लिए पचासों तर्क दे सकता है और वर्तमान में दे ही रहा है. सर्वप्रथम ये निर्णय एक मत से होना चाहिए की रत्न ग्रह की किस अवस्था में पहना जाए. 


          मैंने ऊपर ये बतया कि लग्नेश, पंचमेश और भाग्येश का एक जातक की कुंडली में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है सो यह योगकारक है, इनके रत्न हमे अवश्य धारण करने चाइये अगर ये कुंडली में निर्बल पड़ रहे हो और उनको बल देने की जरूरत हो. इनके आलावा भी अन्य ग्रह योगकारक की श्रंखला में आते है जैसे केंद्र और त्रिकोण का अधिपति ग्रह, अगर यह निर्बल पड़ रहा हो तो उनके भी रत्न हमे धारण करने चाइये।


           यह  तो  हमने  विद्वानो  के  रत्नो  के  धारण  करवाने  के विचार और  उनकी  अलग अलग मान्यताओं  के बारे में बात की,  लेकिन  कई  नकली  ज्योतिषी  जो  मात्र  ज्योतिषी  होने  का  ढोंग  करते आपको  टीवी  चैनल पर  बड़े  बड़े  तिलक  और  माला  धारण  किये  दिख  जाते है।  मेरी  समझ  में  यह  बात नही  आती  की  यह  लोग  मात्र  ३० से ४०  सेकण्ड  की  फोन  कॉल पर  कुंडली  का  विश्लेषण  करके  रत्न  भी  सुझा  देते है  और फिर  अगले  ही  मिनट  दूसरी  कॉल  का  उत्तर  भी  दे  देते  है. यही  वो लोग हैं जो सूर्य के नीच होने पर माणिक और गुरु के नीच होने पर पुखराज पहनने की सलाह देते हैं और केवल राशि स्वामी का रत्न धारण करने की सलाह बेहिचक दे देते हैं. राशि तो एक पान की दुकान चलाने वाले और एक ज्वैलरी शोरुम के मालिक की भी एक हो सकती है, लेकिन उनकी जन्मपत्रिका में ग्रहो के योग जरूर अलग होंगे, उनकी स्थिति अलग होगी।  उनकी स्थिति निर्धारण करके ही एक अच्छा ज्योतिषी जातक को उचित रत्न धारण करने का परामर्श देता है. 
          इसको एक आसान उदहारण से समझने का प्रयास करे जैसे आप अँधेरे में है तो आपको उस अँधेरे को दूर करें के लिए प्रकाश की जरूरत होगी। ठीक इसी प्रकार अगर हमारी  कुंडली के जो ग्रह कारक नही है (जो प्रकाश नही दे सकते) उनके रत्न न पहन कर हमे उन ग्रहों के रत्न धारण करने चाहिये जो करक है जो हमे प्रकाश देने में योग्य है लेकिन कमजोर पड़ रहे है, उनकी इस कमजोरी को हम रत्न के माधय्म से दूर कर सकते है.



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